गला बैठा है कटने की हवस में हिचकियाँ भर कर चला है कोई तरकश में क़फ़स की तीलियाँ भर कर खड़े हो बारिशों की आस में क्या किश्त-ए-दिल वालो कोई बैठा हुआ है बादलों में बिजलियाँ भर कर यहाँ तो हर्फ़ का होंटों पे आते दम निकलता है दिल-ए-दीवाना दामन में चला है अर्ज़ियाँ भर कर तबस्सुम ज़ेर-ए-लब भी इश्क़ को मौज-ए-तसल्ली है समुंदर सो गया दामन में ख़ाली सीपियाँ भर कर किसी ने जब दिल-ए-बर्बाद का अहवाल पूछा है बगूले रहगुज़र की ख़ाक लाए मुट्ठियाँ भर कर हमारे शौक़ का हासिल है ये अब कोई क्या ठहरे खड़े हैं जेब में दामन की अपने धज्जियाँ भर कर