ग़लत-फ़हमी है तुम को हम तुम्हारे तो नहीं हैं हमारी आँख में ऐसे इशारे तो नहीं हैं हमारे हो तो फिर आओ हमारा साथ भी दो मसाइल ज़िंदगी के सब हमारे तो नहीं हैं उदासी को उदासी क्यूँ नहीं तस्लीम करते मिरी पलकों पे आँसू हैं सितारे तो नहीं हैं मैं बाहर ख़्वाब से आ भी गई तो क्या करूँगी मिरी दुनिया में कुछ अच्छे नज़ारे तो नहीं हैं महाज़-आराई जारी है अभी सो लड़ रहे हैं अभी हम लड़ रहे हैं जंग हारे तो नहीं हैं मगर ये कैसे आलम आ रहे हैं याद मुझ को कि ऐसे रोज़-ओ-शब मैं ने गुज़ारे तो नहीं हैं परी कहते हो मुझ को और कभी तुम हूर साहब हमारे ख़ाल-ओ-ख़द कुछ इतने प्यारे तो नहीं हैं