गले पे इक ख़ंजर आब-दार किस का है ये रोज़ रोज़ मिरी जाँ पे वार किस का है है कौन साज़िश-ए-गर्द-ओ-गुबार के पीछे पस-ए-सुमूम-ए-जुनूँ रेगज़ार किस का है धमक-ज़दा हैं ख़लाओं में बस्तियाँ किस की शिकस्ता सर पे मकाँ इंतिशार किस का है चमकते रंग खिले नक़्श आईना चेहरे तो आज नक़्श-ए-नज़र पर ये बार किस का है सराब-ओ-दश्त ज़मान-ओ-मकान सब यकसाँ हमें भी दहर में अब ए'तिबार किस का है है कौन दिल की अदा-ए-तलब से ना-वाक़िफ़ बग़ैर नग़्मा लरज़ता है तार किस का है कोई नहीं है अगर दफ़्तर-ए-तख़ातुब में तो फिर ये हर्फ़ ये क़ौल-ओ-क़रार किस का है पलट के आई है मक़्तल में ज़िंदगी 'राहत' फ़क़ीह-ए-शहर को अब इंतिज़ार किस का है