गले से दिल के रही यूँ है ज़ुल्फ़-ए-यार लिपट कि जूँ सपेरे की गर्दन में जाए मार लिपट मज़े उठाते क़मर-बंद की तरह से अगर कमर से यार की जाते हम एक बार लिपट हमारे पास वो आया तो खोल कर आग़ोश ये चाहा जावें हम उस से ब-इंकिसार लिपट वहीं वो दूर सरक कर इताब से बोला हमारे साथ न हो कर तू बे-क़रार लिपट हमें जो चाहें तो लपटें 'नज़ीर' अब वर्ना तू चाहे लिपटे सो मुमकिन नहीं हज़ार लिपट