गली कूचों में जब सब जल-बुझा आहिस्ता आहिस्ता घरों से कुछ धुआँ उठता रहा आहिस्ता आहिस्ता कई बेचैनियों की शिद्दत-ए-इज़हार की ख़ातिर मुझे हर लफ़्ज़ पर रुकना पड़ा आहिस्ता आहिस्ता अदम हस्ती फ़ना और फिर बक़ा इक दायरा सा है समझ में आ ही जाएगा ख़ुदा आहिस्ता आहिस्ता मसीहाई की सुब्हों सब्र की रातों के आँगन में लहू बहता रहा बहता रहा आहिस्ता आहिस्ता फ़सील-ए-शहर बनते ही चले आए अलम उस के मिरी पहचान का परचम खुला आहिस्ता आहिस्ता इताअत में भी तहरीम-ए-अना की फ़िक्र लाज़िम है सर-ए-तस्लीम भी अपना झुका आहिस्ता आहिस्ता 'मुनीर' अहल-ए-तहम्मुल का जुनूँ से वास्ता क्या है मोहब्बत जुरआ' जुरआ' और वफ़ा आहिस्ता आहिस्ता