ग़म ब-हर-तौर नुमायाँ हो ज़रूरी तो नहीं आदमी चाक-गरेबाँ हो ज़रूरी तो नहीं दर्द शर्मिंदा-ए-दरमाँ हो ज़रूरी तो नहीं मुफ़्त में आप का एहसाँ हो ज़रूरी तो नहीं अमल-ओ-क़ौल से होता है नुमायाँ किरदार आदमी जो भी हो इंसाँ हो ज़रूरी तो नहीं हुस्न अगर ज़ूद-पशेमाँ है तो होगा लेकिन इश्क़ भी ज़ूद-पशेमाँ हो ज़रूरी तो नहीं मेरी तक़दीर सँवरनी है सँवर जाएगी आप की ज़ुल्फ़ परेशाँ हो ज़रूरी तो नहीं हुस्न होता है फ़क़त हुस्न-ए-नज़र से पैदा हर कली जान-ए-गुलिस्ताँ हो ज़रूरी तो नहीं ग़ैर की लाफ़-ज़नी पर भी रहे पास-ए-अदब कोई अंगुश्त-ब-दंदाँ हो ज़रूरी तो नहीं रुख़-ए-ज़ेबा को ज़रूरत नहीं ज़ेवर की 'सहर' हम तरन्नुम में ग़ज़ल-ख़्वाँ हों ज़रूरी तो नहीं