ग़म हज़ारों दिल-ए-हज़ीं तन्हा बोझ कितने हैं और ज़मीं तन्हा बस गए यार शहर में जा कर रह गए दश्त में हमीं तन्हा अपने प्यारों को याद करता है आदमी हो अगर कहीं तन्हा तेरी यादों का इक हुजूम भी है आज की रात मैं नहीं तन्हा वो किसी बज़्म में न आएगा गोशा-ए-दिल का वो मकीं तन्हा कारोबार-ए-हयात का हासिल एक दौलत ही तो नहीं तन्हा दिल न हो गर नमाज़ में हाज़िर है अबस सज्दा-ए-जबीं तन्हा मेरे अर्हम कभी तो इस दिल में हो तिरा ख़ौफ़-ए-जागुज़ीँ तन्हा मेरा सामान-ए-आख़िरत मौला चश्म-ए-नादिम का इक नगीं तन्हा