ग़म के बादल भले ही गहरे हों By Ghazal << आज करना थी तवज्जोह चाक-ए-... न मैं हाल-ए-दिल से ग़ाफ़ि... >> ग़म के बादल भले ही गहरे हों बस तिरी याद के उजाले हों हम को दरकार इक तबीब की है आप आएँ तो हम भी अच्छे हों काम आसान कर दिया जाए इश्क़ में वापसी के रस्ते हों इन को भी अपनी झुरियाँ दिख जाएँ आइनों के भी अपने चेहरे हों Share on: