ग़म के बादल हैं ये ढल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता दीप हर गाम पे जल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता आबला-पाई ही काफ़ी है तिरा रख़्त-ए-सफ़र ख़ार ख़ुद गुल में बदल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता तूर पर आ के ज़रा आप उठाएँ तो नक़ाब संग-ए-दिल बन के पिघल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता चश्म-ए-साक़ी से कहाँ पी है कि गिर कर न उठें जाम से पी है सँभल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता न सही वस्ल कोई वस्ल का वा'दा तो करे हम तो इस पर ही बहल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता