ग़म नहीं जो लुट गए हम आ के मंज़िल के क़रीब जाने कितनी कश्तियाँ डूबी हैं साहिल के क़रीब सरफ़रोशी मेरी कोई रंग दिखला जाएगी आ गया हूँ ये इरादा ले के क़ातिल के क़रीब सिर्फ़ दिल की बे-हिसी थी फ़ासला कुछ भी न था जब किया एहसास पाया आप को दिल के क़रीब तुम ने जो रक्खा यूँ ही तख़रीब-काराना मिज़ाज कौन आने देगा तुम को अपनी महफ़िल के क़रीब रुकते हैं कब रोकने से मौज-ए-तूफ़ाँ के 'गुहर' हौसले वाले पहुँच जाते हैं साहिल के क़रीब