ग़म ने बाँधा है मिरे जी पे खला हाए खला फिर नए सिर सेती आई है बला हाए बला ऐ गुल-ए-गुलशन-ए-जाँ कर मुझे यक-बार निहाल ख़ार हसरत का कलेजे में सला हाए सला देख सकता नहीं मैं गुल कूँ हर यक ख़ार के साथ अपने हम-राह रक़ीबों कूँ न ला हाए न ला ज़ब्ह करने में मिरे रहम न लाया उस ने बल्कि इतना भी कहा नें कि गला हाए गला जिस ने खाया है तेरे अबरू-ए-ख़ूँ-रेज़ का ज़ख़्म मुर्ग़-ए-बिस्मिल सा लहू बीच रला हाए रला जान-ए-जानाँ कूँ मिरे पास शिताबी लाओ नीं तो यक पल में मिरा जान चला हाए चला बे-तरह अब तो बिरह आग दहकती है 'सिराज' दिल मिरा क्यूँ न पुकारे कि जला हाए जला