ग़म से भीगे हुए नग़्मात कहाँ से लाऊँ दर्द में डूबी हुई बात कहाँ से लाऊँ जिन में यादों को तिरी झोंक दूँ जलने के लिए वो सुलगते हुए दिन रात कहाँ से लाऊँ जो पसंद आए तुझे ख़ून-ए-जिगर के बदले सोने चाँदी की वो सौग़ात कहाँ से लाऊँ दिल भी तिश्ना है मिरी रूह भी तिश्ना है मगर तेरे जल्वों की वो बरसात कहाँ से लाऊँ तेरे वादे जो तुझे याद दिलाएँ ज़ालिम हाए माज़ी के वो लम्हात कहाँ से लाऊँ जब मिरे भाग में तन्हाई का अँधियारा है फिर भला प्रेम की प्रभात कहाँ से लाऊँ दिल मिरा रोता है तन्हाई में पहरों 'शेवन' वो बुज़ुर्गों की हिदायात कहाँ से लाऊँ