ग़म-ए-आहिस्ता-रौ याँ रफ़्ता रफ़्ता किया है मुझ कूँ हैराँ रफ़्ता रफ़्ता वो साहिर ने अदा का सेहर कर कर लिया मुझ सीं दिल-ओ-जाँ रफ़्ता रफ़्ता जिगर उश्शाक़ का दाग़-ए-जफ़ा सूँ हुआ सेहन-ए-गुलिस्ताँ रफ़्ता रफ़्ता कमंद-ए-ज़ुल्फ़ दिखला कर किया है मिरे दिल कूँ परेशाँ रफ़्ता रफ़्ता ज़ि-बस उस यूसुफ़-ए-मिस्री के हैं लब हुआ दिल मिस्ल-ए-कनआँ रफ़्ता रफ़्ता 'सिराज' अब तू न हो ग़मगीं कि रहमाँ करेगा मुश्किल आसाँ रफ़्ता रफ़्ता