ग़म-ए-दिल का बयान छोड़ गए हम ये अपना निशान छोड़ गए तिरी दहशत से बाग़ में सय्याद मुर्ग़ सब आशियान छोड़ गए राह में मुझ को हमरहाँ मेरे जान को ना-तवान छोड़ गए नफ़रत आई सग-ओ-हुमा को क्या जो मिरे उस्तुख़्वान छोड़ गए चलते चलते भी ये जफ़ा-केशाँ हाथ मुझ पर निदान छोड़ गए किसी दर पर उन्हों को जा न मिली जो तिरा आस्तान छोड़ गए सफ़र इस दिल से कर गए ग़म-ओ-दर्द यार सूना मकान छोड़ गए सफ़हा-ए-रोज़गार पर लिख लिख इश्क़ की दास्तान छोड़ गए ले गए सब बदन ज़मीं में हम 'मुसहफ़ी' इक ज़बान छोड़ गए