ग़म-ए-हबीब ग़म-ए-दो-जहाँ नहीं होता अगर ख़ुलूस-ए-वफ़ा बे-कराँ नहीं होता दिलों की आग बढ़ाओ कि लोग कहते हैं चराग़-ए-हुस्न से रौशन जहाँ नहीं होता तिरी निगाह-ए-करम ही का ये असर तो नहीं जहाँ में हम पे कोई मेहरबाँ नहीं होता शुऊ'र-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद भी है शर्त-ए-सफ़र हुजूम-ए-राह-रवाँ कारवाँ नहीं होता