ग़म-ए-हयात की लज़्ज़त बदलती रहती है ब-क़द्र-ए-फ़िक्र शिकायत बदलती रहती है हरीम-ए-राज़ उमीद-ए-करम कि ज़ौक़-ए-नुमूद ख़ुलूस-ए-दोस्त की क़ीमत बदलती रहती है कभी ग़ुरूर कभी बे-रुख़ी कभी नफ़रत शबीह-ए-जोश-ए-मोहब्बत बदलती रहती है नहीं कि तेरा करम मुझ को नागवार नहीं ये ग़म है वज्ह-ए-मसर्रत बदलती रहती है अगर फ़रेब हसीं हो तो फिर फ़रेब नहीं ख़ता मुआ'फ़ हक़ीक़त बदलती रहती है