ग़म-ए-हयात को अपनाओ ज़िंदगी कर लो अब आँखें खोल दो इक पल को रौशनी कर लो ग़मों के दौर में तुम को अगर है ख़ुश रहना तो मुस्कुराओ ज़रा दर्द में कमी कर लो मैं इस सहारे तमाम उम्र काट सकता हूँ नज़र से छू के मिरे ख़त को सुरमई कर लो किसे ख़बर है कि बाक़ी है ज़िंदगी कब तक ये मशवरा है कि अब मुझ से दोस्ती कर लो इक अजनबी से सुने मैं ने तज़्किरे अपने अब इस से अच्छा है चर्चा गली गली कर लो तुम अपनी ज़ात को महसूस कर न पाओगे तुम अपनी ज़ात से मुझ को अगर नफ़ी कर लो भटक रहे हो उदासी के दश्त में 'आफ़ाक़' तुम्हें ये किस ने कहा था कि आशिक़ी कर लो