ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ बहुत हैं ग़म ज़माने में मगर जो ग़म को अपनाए बहुत हैं कम ज़माने में ख़ुद ही अपना पता रक्खो ख़ुद ही अपनी ख़बर रक्खो सभी मद्धम सभी बातिन सभी मुबहम ज़माने में मैं किस को क्या कहूँ मासूम हैं सारे ब-ज़ाहिर तो बदल जाता है लेकिन दफ़अ'तन मौसम ज़माने में करो वा'दा कि तुम आओगे इस महफ़िल को जाँ देने सजाएँगे कभी जो दिल की महफ़िल हम ज़माने में