ग़मों से हिज्र के कुछ ऐसे बद-हवास रहे वो मिल गए भी तो हम देर तक उदास रहे ये अंजुमन तो सितम को सितम ही समझेगी तिरा करम कि हमीं-हम अदा-शनास रहे वो चाक-दामनी-ए-गुल का राज़ क्या जानें भरी बहार में जो ख़ार बे-लिबास रहे जुनूँ है एक जसारत जुनूँ है एक तरंग ख़िरद नहीं कि असीर-ए-उमीद-ओ-यास रहे न टूटना था न टूटा ग़ुरूर-ए-गुमराही पहुँच गए भी तो मंज़िल के आस-पास रहे निगाह तक तो उठा दी किसी ने जाम के साथ जो फिर भी रहती है 'ख़ावर' तो अपनी प्यास रहे