गर जफ़ा की न हो वफ़ा माने कोई ज़ालिम नहीं तिरा माने चारा-गर के इलाही टूटें हाथ हो गई दर्द की दवा माने सामने तेरे दम न निकला हाए हसरतों की हुई क़ज़ा माने क्यूँ न उल्टी नक़ाब चेहरे से हश्र की क्यूँ हुई हया माने क्यूँ न फेरी छुरी रुका क्यूँ हाथ तेरा जल्लाद कौन था माने छोड़ कर पर्दा हट गया वो शोख़ नाला दीदार का हुआ माने 'आसमान' उस क़मर के आने का हुआ इज़हार-ए-मुद्दआ माने