गर जज़्बा-ए-वहशत का ऐ दिल यही उनवाँ है दो रोज़ का दामन है दो दिन का गरेबाँ है हँसने में कि रोने में मरने में कि जीने में मालूम नहीं किस में ख़ुशनूदी-ए-जानाँ है हम वहशियों का मस्कन क्या पूछता है ज़ालिम सहरा है तो सहरा है ज़िंदाँ है तो ज़िंदाँ है ज़िंदाँ में ख़याल इतना ऐ दस्त-ए-जुनूँ रखना ता-उम्र असीरी है और एक गरेबाँ है अल्लाह ज़माने के दिल को रखे क़ाबू में हम जानते हैं मंज़र क्यूँ चाक गरेबाँ है