गर कहीं उस को जल्वा-गर देखा न गया हम से आँख भर देखा नाला हर चंद हम ने गर देखा आह अब तक न कुछ असर देखा आज क्या जी में आ गया तेरे मुतबस्सिम हो जो इधर देखा आईने को तो मुँह दिखाते हो क्या हुआ हम ने भी अगर देखा दिल-रुबा और भी हैं पर ज़ालिम कोई तुझ सा न मुफ़्त पर देखा और भी संग-दिल हुआ वो शोख़ तेरा ऐ आह बस असर देखा मिन्नत ओ आजिज़ी ओ ज़ारी ओ आह तेरे आगे हज़ार कर देखा तो भी तू ने न ऐ मह-बे-मेहर नज़र-ए-रहम से इधर देखा सच है 'बेदार' वो है आफ़त-ए-जान हम ने भी क़िस्सा-मुख़्तसर देखा