गर कहूँ मतलब तुम्हारा खुल गया कहते हैं अच्छा हुआ क्या खुल गया ग़ैर की क़िस्मत की खानी है क़सम बंद था दरवाज़ा उन का खुल गया तुम खुले-बंदों मिलो अग़्यार से शुक्र पाँव अब तुम्हारा खुल गया आ गई बे-पर्दा वो सूरत नज़र आँख की जब बंद पर्दा खुल गया ग़ैर से अब बंद हो किस बात पर गालियों पर मुँह तुम्हारा खुल गया खुल गया हाल इस दिल-ए-बेताब का मुँह दुपट्टे से जो उन का खुल गया हों इशारे ग़ैर से और देखूँ मैं बैत-ए-अबरू का भी माना खुल गया नामा-बर! तेरे छुपाने से मुझे अपनी क़िस्मत का नविश्ता खुल गया दिल की बे-ताबी ने रुस्वा कर दिया हाए सब पर राज़ अपना खुल गया नामा-बर! गर ग़ैर ने देखा नहीं कैसे फिर ख़त का लिफ़ाफ़ा खुल गया क़ुदरत-ए-हक़ से बढ़ी इशरत की शब शब जो उस काफ़िर का जूड़ा खुल गया देखिए क्या दिल से दिल को राह है राज़ जो तुम ने छुपाया खुल गया जो न कहना था कहा सब कुछ 'निज़ाम' राज़ बातों में वो ऐसा खुल गया