गर नहीं है तो मेरे याँ नहीं है राएगानी कहाँ कहाँ नहीं है जिसे मौज-ए-हवा उड़ाए फिरे ये मिरा जिस्म है धुआँ नहीं है मैं वहाँ भी नहीं जहाँ मैं हूँ तू वहाँ भी है तू जहाँ नहीं है अब तो खुल कर मिला करो मुझ से अब मोहब्बत भी दरमियाँ नहीं है बात करनी है जानते हुए भी इस जगह जान की अमाँ नहीं है कल यहाँ एक पेड़ था 'सय्यद' और अब दूर तक निशाँ नहीं है