गर उन्हें है अपनी सूरत पर घमंड हम को है अपनी मोहब्बत पर घमंड मेरे उन के फिर भला क्यूँ-कर बने ख़त्म है दोनों की ख़सलत पर घमंड क्या नहीं देखी बुलंदी आह की क्यूँ फ़लक करता है रिफ़अत पर घमंड काम क़ारूँ के न आया माल-ओ-ज़र मुनइमो बेजा है दौलत पर घमंड बादशाह-ए-हफ़्त-किशवर है तो क्या कर न दो दिन की हुकूमत पर घमंड देख कर आईना मुझ को दंग है मुझ को भी है अपनी हैरत पर घमंड उन को अपनी सुब्ह-ए-महशर पर है नाज़ हम को अपनी शाम-ए-फ़ुर्क़त पर घमंड छुप-छुपा कर देख भी लेंगे तुम्हें हम को भी है अपनी जुरअत पर घमंड कुछ नहीं कर सकता 'अंजुम' आप का आसमाँ को है जो हसरत पर घमंड
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