गरचे बनता नहीं ढब सोने का जानाँ से लिपट एक दिन जाऊँगा पर उस के मैं दामाँ से लिपट ऐ फ़लक तुझ से तमन्ना है कि इस जाड़े में सोइए गर्म हो इस मेहर-ए-दरख़्शाँ से लिपट बाद मुद्दत जो उसे सैर-ए-चमन में देखा मैं गया दौड़ के इस सर्व-ख़िरामाँ से लिपट बाग़बाँ ने जो न दी रिफ़अत-ए-गुल-गश्त हमें बुत से हो रह गए दीवार-ए-गुलिस्ताँ से लिपट 'माहिर' उस शोख़ ने जब तीर निगह का फेंका उस के पैकान रहे आह रग-ए-जाँ से लिपट