गरेबाँ चाक हैं गुल बोस्ताँ में असर कितना है बुलबुल की फ़ुग़ाँ में क़फ़स सय्याद का ख़ाली पड़ा है न हों बेचैन क्यूँ कर आशियाँ में दुआ-ए-वस्ल जा अब तो असर तक किए नालों ने रौज़न आसमाँ में सुने गर ताला-ए-ख़ुफ़्ता का क़िस्सा तो नींद आ जाए चश्म-ए-पासबाँ में ज़ुलेख़ा की मिची जाती हैं आँखें कहीं यूसुफ़ न हो इस कारवाँ में तमाम अस्बाब-ए-दुनियावी के बदले है इक बे-रौनक़ी अपनी दुकाँ में सुना हाल-ए-दिल-ए-'मजरूह' शब को कोई हसरत सी हसरत थी बयाँ में