ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक है किस के काम की ये ज़ाहिरी सलाम-अलैक करें न सीधी निगह दूसरी सलाम-अलैक है अब के यारों की ये झरझरी सलाम-अलैक तलव्वुन ऐसा इन अबना-ए-रोज़गार में है कि सुब्ह मिलिए तो है चरपरी सलाम-अलैक मबादा बात में बू-ए-तमअ अगर पावें फिर उन की आँखों से तेरी गिरी सलाम-अलैक जो शाम देखो तो फिर इन तिलों में तेल नहीं चुराई आँखें हैं भौवें फिरी सलाम-अलैक ब-क़ौल-ए-शाएर-ए-बंगाला 'अज़फ़री' यूँ रह ''कि खाना गाँठ का इन से निरी सलाम-अलैक''