ग़ुबार दिल पे बहुत आ गया है धो लें आज खुली फ़ज़ा में कहीं दूर जा के रो लें आज दयार-ए-ग़ैर में अब दूर तक है तन्हाई ये अजनबी दर-ओ-दीवार कुछ तो बोलें आज तमाम-उम्र की बेदारियाँ भी सह लेंगे मिली है छाँव तो बस एक नींद सो लें आज तरब का रंग मोहब्बत की लौ नहीं देता तरब के रंग में कुछ दर्द भी समो लें आज किसे ख़बर है कि कल ज़िंदगी कहाँ ले जाए निगाह-ए-यार तिरे साथ ही न हो लें आज