गौहर-ए-अश्क से लबरेज़ है सारा दामन आज-कल दामन-ए-दौलत है हमारा दामन ऐ जुनूँ बाद-ए-बहारी से नहीं जुम्बिश में कुछ गरेबान से करता है इशारा दामन वस्ल की रात है बिगड़ो न बराबर तो रहे फट गया मेरा गरेबान तुम्हारा दामन जामा-चीं ने नहीं ये फूल चुने नर्गिस के सैकड़ों आँखों से करता है नज़ारा दामन बहुत ऐ दस्त-ए-जुनूँ तंग-नज़र आता है बाँध दे दामन-ए-सहरा से हमारा दामन ख़ूब पहुँचा दिया ऐ दस्त-ए-जुनूँ हाथों-हाथ मिल गया आज गरेबान से सारा दामन आमद आमद मिरे अश्कों की मगर सुन ली है झाड़ कर गर्द जो सहरा ने सँवारा दामन