ग़ुलाम की रोज़ ओ शब ग़ुलामी में क्या कमी थी कनीज़ के इल्तिफ़ात ओ ख़ूबी में क्या कमी थी इन्हें दर-ए-ख़्वाब-गाह से किस लिए हटाया मुहाफ़िज़ों की वफ़ा-शिआरी में क्या कमी थी जलाल-ए-गीती सताँ से दरबार काँपता था मुक़र्रिबों की मिज़ाज-फ़हमी में क्या कमी थी गिराँ गुज़रता था क्यूँ तबीअत पे साथ उस का वज़ीर-ज़ादे की नुक्ता-संजी में क्या कमी थी नशिस्त में इस क़दर तअम्मुल ब-वक़्त-ए-रुख़्सत मुरस्सा ओ मुस्तइद सवारी में क्या कमी थी खड़े थे क्यूँ चौकीदार दो-रूया नेज़े थामे महल की दीवार की बुलंदी में क्या कमी थी गुज़र न सकता था कोई ख़्वाजा-सरा न बांदी हरम के राज़ों की पासदारी में क्या कमी थी न जाने सालार मुतमइन क्यूँ नहीं थे 'यासिर' सिपाह के अज़्म ओ जाँ-सिपारी में क्या कमी थी