ग़ुंचे चटक गए चमन-ए-रोज़गार के फूटे हबाब मौज-ए-नसीम-ए-बहार के रिज़वाँ जो टोकेगा दर-ए-फ़िर्दोस पर हमें कह देंगे रहने वाले हैं हम कू-ए-यार के आँखें तरस रही हैं मिरी तेरी ज़ुल्फ़ को तारे चमक रहे हैं शब-ए-इंतिज़ार के आग़ाज़ में भी हम को है अंजाम का ख़याल धड़के शबाब में भी हैं रोज़-ए-शुमार के मज़मून हैं हिरन मिरी बंदिश कमंद है ऐ 'क़द्र' शाइ'री में मज़े हैं शिकार के