ग़ुंचे वही हैं गुल वही गुलज़ार भी वही दस्त-ए-जुनूँ सँभलना कि हैं ख़ार भी वही हैं इंतिज़ार-ए-संग में अस्मार बे-शुमार और इंकिसार से झुके अश्जार भी वही ख़ुश हो के झूम लेती है अक्सर तो ज़िंदगी लेकिन वुफ़ूर-ए-ग़म से है बेज़ार भी वही है शहरयार जिस को न हो ज़र की एहतियाज अहल-ए-दुवल के शहर में मुख़्तार भी वही मर मर के जी रहा हूँ तिरे बोद-ओ-क़ुर्ब में इंकार भी वही तिरा इक़रार भी वही करता है वो नसाएह सदा अम्न की मगर सारे जहाँ से बरसर-ए-पैकार भी वही क्या है 'शकील' दुनिया कि उस की निगाह में जो सब के काम आता है बे-कार भी वही