गेरवे कपड़े बदन पर हाथ लोहे के कड़े ले मलामत-दार सूफ़ी दर पे तेरे आ पड़े इख़्तियारात-ए-दयार-ए-दहर हासिल हों मुझे मेहर से सोना-कशीदों माह से चाँदी झड़े भेज दे मुझ को जहान-ए-हिसिय्यात-ओ-लम्स में शोर से उलझे समाअ'त आँख से मंज़र लड़े सुर्ख़ ईंटों की गली तक जाएँ हम दीवाना-वार दफ़अ'तन अपनी निगह उस के दरीचे पर पड़े उस तअ'फ़्फ़ुन-गाह सा इक और सय्यारा भी हो पेड़ मरते हों जहाँ तालाब में पानी सड़े हर मसीहा-ए-ज़माँ को ख़ैर-मक़्दम चाहिए ताज हो काँटों का सर पर मेख़ हाथों में गड़े