ग़ैर ने सर उठा के देख लिया जूते दो चार खा के देख लिया है अखाड़े के ना'ल से भारी उस का ग़म्ज़ा उठा के देख लिया पड़ गई अपने पाँव में ज़ंजीर सर से सहरा बँधा के देख लिया सैकड़ों आज पड़ गईं चपतें शैख़ जी सुर घटा के देख लिया न हुआ राम वो बुत-ए-काफ़िर हम ने घंटा बजा के देख लिया वस्ल से मेरे सर हिलाते हैं शैख़ सद्दू मना के देख लिया ग़श नहीं ग़ैर को ये मिर्गी है हम ने जूता सूँघा के देख लिया नफ़्स-ए-नापाक बे-हया कुत्ते हम ने तुझ को हिला के देख लिया लो निकलवा दी ग़ैर की पथरी ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं सुँघा के देख लिया घट गया ऐ 'इनायत' अपना ज़ोर रब्त उन से बढ़ा के देख लिया