ग़ैर से जम न सका रंग-ए-वफ़ा मेरे बा'द मिट गया शेवा-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा मेरे बा'द उस सितमगर के उठे दस्त-ए-दुआ' मेरे बा'द बेकसी देखती है शान-ए-ख़ुदा मेरे बा'द अब तो वो गर्मी-ए-बाज़ार-ए-हसीनाँ भी नहीं कैसी तब्दील हुई आब-ओ-हवा मेरे बा'द शुक्र है मर के मैं आईन-ए-वफ़ा से छूटा रह सके वो भी न पाबंद-ए-जफ़ा मेरे बा'द शम्अ ख़ामोश रही रूह भी दब कर निकली कोई हंगामा-ए-आलम न हुआ मेरे बा'द हुस्न और इश्क़ के चर्चों में भी कुछ लुत्फ़ नहीं मिल गया ख़ाक में दुनिया का मज़ा मेरे बा'द जान देते हुए इस वास्ते डरता हूँ 'शमीम' खुल न जाए कहीं अंजाम-ए-वफ़ा मेरे बा'द