ग़म-ए-इश्क़-ए-बुताँ है और मैं हूँ By Ghazal << हर आह बे-असर ही नहीं बा-अ... ग़म से जब फ़ैज़याब होता ह... >> ग़म-ए-इश्क़-ए-बुताँ है और मैं हूँ ये जान-ए-ना-तवाँ है और मैं हूँ अज़ल से जो मुक़द्दर हो चुका है वो इक सोज़-ए-निहाँ है और मैं हूँ शब-ए-ग़म दिल के बहलाने को हमदम किसी की दास्ताँ है और मैं हूँ बस इतना फ़ासला बाक़ी है उन से मोहब्बत दरमियाँ है और मैं हूँ Share on: