ग़म-ए-इश्क़ को आज़माना पड़ेगा उन्हें रब्त-ए-उल्फ़त बढ़ाना पड़ेगा दर-ए-यार का'बा नहीं फिर भी ज़ाहिद दर-ए-यार पर सर झुकाना पड़ेगा निशाँ उस का मिलना तो मुश्किल नहीं है मगर नक़्श-ए-हस्ती मिटाना पड़ेगा यही है अगर मेरा ज़ौक़-ए-नज़ारा सर-ए-तूर फिर तुम को आना पड़ेगा सर-ए-हश्र दामन पकड़ कर किसी का कहूँगा मुझे बख्शवाना पड़ेगा ये कहती है 'मख़मूर' उन की मोहब्बत मिरे सामने सर झुकाना पड़ेगा