ग़म की काली रात को यूँ हल किया हम ने आख़िर दर्द को काजल किया सुरमई रेशम पे था तारों का जाल कितना प्यारा रात का आँचल किया मेरे अंदर फैलता जाता था जो तय बड़ी मुश्किल से वो जंगल किया हम ने यूँ हँस कर गुज़ारी ज़िंदगी अपनी हर ज़ंजीर को पायल किया राब्ता ख़ुशबू से रक्खा उस्तुवार रूह में जलता हुआ संदल किया