घर छोड़ा बे-सम्त हुए हैरानी में कैसे कैसे दुख झेले नादानी में ताज़ा हवा में उस के नफ़स की ख़ुशबू थी क़तरा क़तरा डूब गया मैं पानी में किस ने जोड़ा क्यूँ जोड़ा मज़कूर नहीं उस का क़िस्सा मेरी राम-कहानी में चाँद को आगे बढ़ना औज पे जाना था तारे टूटे पल पल ऐन जवानी में कैसा था वो पैकर-ए-ख़ूबी क्या कहिए आईना दो लख़्त हुआ हैरानी में दिल पे अचानक सब्त हुआ ता-उम्र रहा ऐसा भी इक अक्स मिला था पानी में सारी ग़ज़लें इक जैसी ही लगती हैं क्या रक्खा है 'नामी' जश्न-ए-मआनी में