घर में मिट्टी का दिया मौजूद है रौशनी से राब्ता मौजूद है चाहिए बीनाई सुनने के लिए बाज़ रंगों में सदा मौजूद है कब से उड़ता है ग़ुबारा अर्ज़ का इस में अब कितनी हवा मौजूद है गो बहुत महदूद है जिंस-ए-वफ़ा फिर भी मेरे बेवफ़ा! मौजूद है उम्र भर जंगल में रह सकता हूँ मैं इस में घर जैसी फ़ज़ा मौजूद है ज़िक्र-ए-गुमराही कहाँ से आ गया रास्ता ही कौन सा मौजूद है ना-ख़ुदा बे-ख़ौफ़ अब लंगर उठा नाव में इक बा-ख़ुदा मौजूद है