घर में तिरे पैग़ाम को तरसें बाहर जल्वा-ए-बाम को तरसें तुम सूरज और चाँद से खेलो हम कि चराग़-ए-शाम को तरसें तुम कि शिकस्त-ए-जाम के आदी हम कि शिकस्ता जाम को तरसें और अभी कुछ रात है बाक़ी और अभी आराम को तरसें आज हज़ारों काम हैं बाक़ी फिर भी हज़ारों काम को तरसें आज़ादी के ऊँचे सूरज गलियाँ तेरे नाम को तरसें