घर से घर तक का रास्ता न मिला कोई भी ख़ुद में झाँकता न मिला सब के हमराह सब के साए थे शहर में कोई देवता न मिला कितने होंटों का लम्स याद रहे एक भी नक़्श देर-पा न मिला रौशनी के सफ़ीर लौट गए शहर-दर-शहर रत-जगा न मिला तंग था ज़ात का हिसार बहुत कोई रस्ता फ़रार का न मिला कितने आँसू निचोड़ कर देखे खो गया था जो क़हक़हा न मिला हम ही थे अपने आस-पास 'नज़र' राह में कोई दूसरा न मिला