घर वाले भी सोए हैं अभी शब भी घनी है आ जाना मिरे पीछे जहाँ नाग-फनी है रुस्वा हुई कुछ त्याग के तू प्यार के संबंध कुछ बाइस-ए-तश्हीर मिरी बे-वतनी है सौ बार मिरा तेरा मिलन मोह हुआ है किस नाज़ कस अंदाज़ पे तू इतना तनी है आँखों का सुभाव है कि सुब्हों की कंवलता पलकों का झुकाव है कि नेज़े की अनी है आख़िर कभी तय होगा यूँही नित का बिछड़ना तुझ मुझ में कई जीवनों जन्मों से ठनी है सिर्फ़ इक से मोहब्बत नहीं अब ठानी है दल ने जो जी को लुभाए वही हीरे की कनी है