घटा हो बाद-ए-बहारी हो और जाम नहीं ग़ज़ब हो साक़ी अगर मय से कोई काम नहीं हमारी बात भी ज़ाहिद से जा के कह देना उसे हलाल नहीं मय हमें हराम नहीं किसी को फ़िक्र हो क्यों मेरे मरने जीने की कि मेरी ज़ात से बरहम कोई निज़ाम नहीं हक़ीक़तन यही दुनिया सरा-ए-फ़ानी है है कूच सबब कि किसी को यहाँ क़ियाम नहीं बहुत सवाब मिले टूटे दिल को गर जोड़े कुछ इस से बढ़ के ज़माने में कोई काम नहीं चले थे दीद को ये कह के उस को रोक दिया ये ख़ास लोगों की बारी है दीद-ए-आम नहीं भरोसा कीजिए हरगिज़ न उस की बातों का जिसे न अपनी किसी बात पर क़ियाम नहीं हमेशा ग़ीबतें करता बुरा-भला कहता इन हासिदों को सिवा इस के और काम नहीं कहीं जो हत्थे चढ़ा दिल-जलों के चर्ख़-ए-कुहन जला के ख़ाक न कर दें तो मेरा नाम नहीं मैं वो ग़यूर हूँ 'दीवान' आज तक जिस ने किसी अमीर को झुक कर किया सलाम नहीं खुली हक़ीक़त-ए-'दीवान' अहल-ए-नख़वत पर रईस-ज़ादा हूँ मैं भी कोई ग़ुलाम नहीं