घुटी घुटी ख़ाक में दबी इस सदा से आगे है और सहरा-ए-मर्ग कर्ब-ओ-बला से आगे मिरे मसीहा तलाश कर धड़कनों के जुगनू यहाँ वहाँ ज़िंदगी पड़ी है फ़ना से आगे निगल गई हँसते-खेलतों को पलक झपकते सितमगरी में ज़मीं बढ़ी इंतिहा से आगे उन्हीं की साँसों को ले उड़े आँधियों के रेले जो ऊँचा उड़ने की चाह में थे हवा से आगे शरीक-ए-ग़म सब हुए हैं लेकिन ये वक़्त वो है कि जिस में दरकार और कुछ है दुआ से आगे मैं छत तले पीटती हूँ 'रख़्शंदा' अपने सर को कि हम-नफ़स नंगे सर खड़े हैं रिदा से आगे