गिला नहीं है हमें अपनी जाँ-गुदाज़ी का जिगर पे ज़ख़्म है उस की ज़बाँ-दराज़ी का समंद-ए-नाज़ ने उस के जहाँ किया पामाल वही है अब भी उसे शौक़ तर्क ताज़ी का सितम हैं क़हर हैं लौंडे शराब-ख़ाने के उतार लेते हैं अमामा हर नमाज़ी का उलट-पलट मिरी आह-ए-सहर की क्या है कम अगर ख़याल तुम्हें होवे नेज़ा-बाज़ी का बताओ हम से कोई आन तुम से क्या बिगड़ी नहीं है तुम को सलीक़ा ज़माना-साज़ी का ख़ुदा को काम तो सौंपे हैं मैं ने सब लेकिन रहे है ख़ौफ़ मुझे वाँ की बे-नियाज़ी का चलो हो राह-ए-मुआफ़िक़ कहे मुख़ालिफ़ के तरीक़ छोड़ दिया तुम ने दिल-नवाज़ी का कसो की बात ने आगे मिरे न पाया रंग दिलों में नक़्श है मेरी सुख़न-तराज़ी का बसान-ए-ख़ाक हो पामाल राह-ए-ख़लक़ ऐ 'मीर' रखे है दिल में अगर क़स्द सरफ़राज़ी का