गिला नहीं जो वो बेगाना-वार गुज़रे हैं हम ऐसे अहल-ए-सुख़न बे-शुमार गुज़रे हैं तरस न खाओ मिरी शिद्दत-ए-तबाही पर कि उम्र भर यही लैल-ओ-नहार गुज़रे हैं तमाम-उम्र रहा ख़ौफ़-ए-ना-पज़ीराई जिधर से गुज़रे हैं दीवाना-वार गुज़रे हैं हमीं से तज़किरा-ए-क़हत-ए-आशिक़ाँ तौबा हमीं तो कल तिरे कूचे से यार गुज़रे हैं रहीन-ए-वज़-ए-बुज़ुर्गाँ है अपना दिल या'नी तिरे ही शहर में तुझ से हज़ार गुज़रे हैं हमारा नाम भी रखिए फ़साना-ख़्वानों में कि हम भी अपने सवानेह-निगार गुज़रे हैं हम अपने जोश-ए-तमन्ना में भूल बैठे थे कि हम से और भी उम्मीद-वार गुज़रे हैं इस अंजुमन में तुझे कौन पूछता 'आली' हज़ार तुझ से ग़रीब-उद-दयार गुज़रे हैं