गिराँ था मत्न मुश्किल और भी ताबीर पढ़ लेना तो आसाँ कर लिया दिल-ख़्वाह इक तफ़्सीर पढ़ लेना गुज़िश्ता शब इशारों से लिखा कुछ चाँद पर मैं ने तुम्हें मालूम होगा फिर भी वो तहरीर पढ़ लेना महारत हो गई चेहरों को पढ़ पढ़ कर हमें इतनी कि अब आसाँ है चेहरे की जगह तस्वीर पढ़ लेना मुलाएम उँगलियों की हर इबारत याद है मुझ को हर इक अंगुश्तरी को हल्क़ा-ए-ज़ंजीर पढ़ लेना मिली थी इक यही शोरिश-ज़दा दिल की अमल-दारी सो लिख दी है तुम्हारे नाम ये जागीर पढ़ लेना अगर तारीख़ कुछ अल्फ़ाज़ लिक्खे अगली सदियों में तो क्या क्या लोग अब हैं क़ाबिल-ए-तहरीर पढ़ लेना मोहब्बत ख़ून बन कर जिस्म में दौड़े तो क्या कहना बस इतना कह दिया बाक़ी कलाम-ए-'मीर' पढ़ लेना