गिरानी-ए-शब-ए-हिज्राँ दो-चंद क्या करते इलाज-ए-दर्द तिरे दर्दमंद क्या करते वहीं लगी है जो नाज़ुक मक़ाम थे दिल के ये फ़र्क़ दस्त-ए-अदू के गज़ंद क्या करते जगह जगह पे थे नासेह तो कू-ब-कू दिलबर इन्हें पसंद उन्हें ना-पसंद क्या करते हमीं ने रोक लिया पंजा-ए-जुनूँ वर्ना हमें असीर ये कोतह-कमंद क्या करते जिन्हें ख़बर थी कि शर्त-ए-नवागरी क्या है वो ख़ुश-नवा गिला-ए-क़ैद-ओ-बंद क्या करते गुलू-ए-इश्क़ को दार-ओ-रसन पहुँच न सके तो लौट आए तिरे सर-बुलंद क्या करते